वो ऐसी एक कहानी थी,
जो कलम मे ही बैठी रही,
कागज़ पे उतर न सकी |
जो कलम मे ही बैठी रही,
कागज़ पे उतर न सकी |
वो ऐसी एक बारिश थी,
जो बादल मे ही छुपी रही,
ज़मीन पे बरस न सकी |
वो ऐसी एक सुबह थी ,
जो सपने मे ही खोई रही,
हक़ीक़त मे बिखर न सकी |
वो ऐसी एक फूल थी,
जो कली मे ही सिमटी रही,
जो कली मे ही सिमटी रही,
बागों मे खिल न सकी |
No comments:
Post a Comment